History of Hazrat Khwaja Moinuddin Chisti.
हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (ख्वाजा गरीब नवाज़) Hazrat Khwaja Moinuddin Chishti.....
ख़्वाजा गरीब नवाज एक ऐसे सूफ़ी संत जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गरीब लोगों कि सेवा कि और आज भी उनकी बारगाह में सबकी दुआएं कबूल होती हैं.
ख़्वाजा गरीब नवाज भारत कि प्रसिद्ध दरगाह हैं जहा सभी लोग चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम सभी आते हैं। ख़्वाजा सबकी सुनते हैं।दुनिया के मशहूर चिश्ती संतों में ख्वाजा गरीब नवाज का नाम से सबसे ऊंचा है। अनेक नामों से उनकी इबादत कर अकीदतमंद सुकून पाते हैं। ख्वाजा गरीब नवाज का मूल नाम मोइनुद्दीन हसन चिश्ती था। उन्हें यूं तो अनेक नामों से जाना चाहता है, मगर गरीब नवाज एक ऐसा नाम है, जिससे सभी आम-ओ-खास वाकिफ हैं। इस नाम के मायने हैं गरीबों पर रहम करने वाला। यूं तो अनेक नवाबों, राजाओं-महाराजाओं ने यहां झोली फैला कर बहुत कुछ हासिल किया है, मगर गरीबों पर उनका कुछ खास ही करम है। उनके दरबार में तकसीम होने वाले लंगर के लिए अमीर और गरीब एक ही लाइन में खड़े होते हैं, यही वजह है कि उन्हें गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और आम लोगों के बीच ही बिताया। जो लोग आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि से गरीब थे, जिन्हें इबादत करना नहीं आता था, जिन्हें भक्ति व सच्चाई का ज्ञान नहीं था, उन्हें उन्होंने सूफी मत का ज्ञान दिया। उन्होंने किसी भी राजा या सुल्तान का आश्रय नहीं लिया और न ही उनके दरबारों में गए। उन्होंने स्वयं भी गरीबों की तरह सादा जीवन बिताया। इन्हीं गुणों के कारण उन्हें गरीब नवाज कहा जाता है, जो कि उनका सबसे प्रिय नाम है। ख्वाजा साहब को अता-ए-रसूल के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब होता है खुदा के पैगंबर मोहम्मद साहब का उपहार।
हजरत ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मज़ार अजमेर शहर में है। यह माना जाता है कि मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 537 हिज़री संवत् अर्थात 1143 ई॰ पूर्व पर्शिया के सिस्तान क्षेत्र में हुआ। अन्य खाते के अनुसार उनका जन्म ईरान के इस्फ़हान नगर में हुआ। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम पूर्वजों के वंसज है।
जन्म की तारीख और समय: 1 फ़रवरी 1143, सिस्तान
मृत्यु की जगह और तारीख: 15 मार्च 1236, अजमेर
माता-पिता: ख़्वाजा घियासुद्दीन हसन, उम्म अल वारा
आदेश: चिश्ती तरीक़ा
गुरु: ख़्वाजा अब्दुल्ला अंसारी, नजिब अल दीन नखसहाब
शांतचित्त स्थान: अजमेर शरीफ़ दरगाहहज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इतिहास (ख्वाजा गरीब नवाज़)
हमारे ख्वाजा गरीब नवाज 14 रजब 536 हिजरी (1142 ईस्वी) को पीर (सोमवार) के दिन सिस्तान (ईरान देश का एक गांव) में पैदा हुए। कुछ विद्वान इनकी पैदाइश की तारीख और जन्म की जगह को अलग अलग बताते हैं। बहरहाल 9 साल की उम्र में आप हाफिज ए कुरान हो गए। ख्वाजा साहब की तालीम उनके घर पर ही हुई थी। विरासत में आपको एक छोटा सा बाग़ और एक पनचक्की मिली थी। हज़रत इब्राहिम कंदोजी से मुलाकात होने के बाद जब दिल की दुनिया बदल दिया।
आपने -अपने पीर हज़रत ख्वाजा उस्मान हारुनी रहमतुल्लाह अलैह कि 20 साल तक खिदमत की, इस दौरान आप हज़रत का बिस्तर, खाने के बर्तन, पानी की मशक और अपना सामान कंधे पर लाद कर घूमते फिरे।आपने 51 बार पैदल हज पर फ़रमाया और 52 साल की उम्र में 587 हिजरी (1192 ई.) में हिंदुस्तान तशरीफ़ लाएं।
अजमेर पहुंचकर ख़्वाजा साहब को इस्लाम की तब्लीग़ शुरू करने से पहले किन किन हालात से दो-चार होना पड़ा उसे दोहराने की जरूरत नहीं। बहरहाल आपने अपनी रूहानी ताकत से शाही और शैतानी ताकतों का मुकाबला फरमा कर उन्हें ज़ेर फरमाया। आप हमेशा लोगो के लिए काफी फिकरमंद रहते थे।
आप गरीबों, दुखी लोगों के मसीहा बने, इंसानियत की खिदमत को अपना मिशन बनाकर इस्लाम की तब्लीग़ शुरू फ़रमाई।आपने अजमेर और आसपास के इलाको में इस्लाम,अमन और शांति का पैगाम घर घर पहुंचाया।
आपने एक ही कपड़े में जिंदगी बिताई। कपड़े फटने पर पैवन्द लगा लिया करते थे। पैवन्द लगाते लगाते उसका वजन साढ़े छह किलो हो गया था।
6 रजब 633 हिजरी में आप अजमेर में पर्दा फरमा गए। इंतकाल के बाद आपकी पेेशानी पर नूरानी हरफों में लिखा हुआ था "हाजा हबीबुल्लाह माता फी कुतुबुल्लाह" मतलब की यह अल्लाह का दोस्त है जिसने अल्लाह की मोहब्बत में वफ़ात पायी। हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की बरकत से हिंदुस्तान में इस्लाम का नूर फैला।
आपने कभी पेट भर खाना नहीं खाया कई कई दिनों तक भूखे रहने के बाद सूखी रोटी के टुकड़े पानी में भिगोकर खा लिया करते। आप 24 घंटे के अंदर पुरे कुरान शरीफ की तिलावत कर लिया करते थे। आपने तकरीबन 70 साल तक लगातार पूरी रात आराम नहीं फरमाया।
आप 70 साल तक दिन रात के अक्सर औक़ात बावज़ू रहे, आप तो वली थे ही लेकिन आप जिस पर एक नजर डाल देते वह भी वली हो जाता। काफी दिनों तक आप इस्तिगराक(किसी चीज़ में डूब जाना) के आलम में रहे आंखें बंद किए ज़िक्रे इलाही में गुम रहते। नमाज के वक्त हुजरे से बाहर तशरीफ ला कर जमाअत से नमाज अदा फरमाया करते।
आज भी आपका आस्ताना दीन दुखियों और हक़परस्तो के लिए मर्कज़े अकीदत बना हुआ है, जहां रोजाना हजारों आते हैं और फ़ैज़ पाते हैं।आज भी अजमेर को आप के नाम से दुनिया में जाना जाता हैं। सालाना उर्स के दौरान दुनिया भर के लाखो लोग आपके दरबार में दुआएं मांगने आते हैं।
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